Thursday, 26 December 2013

बेलगाम टीवी चैनल और कानून

देश में पिछले एक दशक में जिस तरह से विभिन्न तरह के टीवी चॅनेल्स की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है उससे इस बात का ख़तरा भी बढ़ता जा रहा है कि इनके लिए कोई नियामक संस्था न होने के कारण ये कई मसलों पर ऐसा काम कर जाते हैं जिसको किसी भी तरह से देश, समाज के हित में नहीं कहा जा सकता है ? इस मामले पर हिन्दू जागृति मंच की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी याचिका के जवाब में कोर्ट ने यह स्पष्ट रूप से समझते हुए इस मसले पर अपना पक्ष रखने के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय, विधि एवं न्याय मंत्रालय के साथ संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को नोटिस जारी करते हुए अपना पक्ष रखने के लिए निर्देशित किया है. इस याचिका में यह मांग की गयी है कि देश में इस माध्यम के बढ़ते प्रभाव के बीच आज तक भी इस पर नज़र रखने और कानून का उल्लंघन करने पर निर्माता और प्रसारक को दण्डित किये जाने या उसके खिलाफ कोई कार्यवाही करने के बारे में स्पष्ट नियम या प्राधिकरण नहीं है.

देश में पहले से प्रिंट मीडिया के लिए प्रेस परिषद् और फिल्मों के लिए एक नियामक पहले से मौजूद है जो किसी भी समस्या के सामने आने पर उसका कानून सम्मत निर्णय करता है और फ़िल्म जगत में तो इस बोर्ड द्वारा प्रमाणपत्र लिए बिना फ़िल्म को बाज़ार में उतारा ही नहीं जा सकता है तो टीवी के लिए आखिर देश में ऐसा प्रावधान भी क्यों नहीं होना चाहिए ? कानूनी तौर पर अभी किसी को भी कोई आपत्ति होने पर वह केवल कोर्ट से ही इस तरह के मामले कोई न्याय पा सकता है पर यदि इसका कोई नियामक तय कर दिया जाए तो सबसे पहले अपने को पीड़ित समझने वाला व्यक्ति उससे अपनी शिकायत कर सकता है. कानूनी और नैसर्गिक न्याय के अनुसार यदि देखा जाये तो इस याचिका में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि जब तक हर साधन को नियंत्रित करने की व्यवस्था देश में नहीं होगी तब तक इस तरह के मसले कोर्ट के सामने आते ही रहेंगें पर कुछ अतिउत्साही लोग इसे भी टीवी पर सरकारी नियंत्रण के रूप में प्रचारित करने से नहीं चूकने वाले हैं.
इस पूरे मसले को सिर्फ एक नियामक के गठन से जोड़कर ही देखना चाहिए क्योंकि जब यह मामला कोर्ट में चलेगा तो निश्चित तौर पर और भी शिकायतें और सुझाव भी सामने आयेंगें पर उस परिस्थिति में जो भी सामने आये और कोर्ट जिस भी तरह का निर्देश जारी करें तो उस स्थिति में सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण हो जायेगा कि वह एक ऐसा नियामक बनाने की दिशा में पहल करे जो इस क्षेत्र से जुड़ी हुई शिकायतों पर ध्यान देकर शिकायत करने वाले की बातों को पूरी तरह से सुनकर अपना निर्णय देने में सक्षम हो सके. अच्छा हो कि इसमें एक बार में ही पूरी व्यवस्था को देखा जाये क्योंकि टीवी पर फिल्मों और प्रेस की तरह नियामक बनाया तो जा सकता है पर उसके लिए फिल्मों की तरह हर जगह नज़र रख पाना आसान नहीं होगा क्योंकि देश में जितनी भाषाओँ में प्रसारण चल रहा है उस पर नियंत्रण आसान नहीं होगा ? उस स्थिति में नियामक के पास आवश्यकता पड़ने पर किसी भी मसले को संदर्भित कर निर्णय कर सकने की क्षमता के साथ यह लचीलापन भी होना चाहिए कि वह इस उद्योग को अपने दम पर सामजिक समरसता के साथ बढ़ने का अवसर भी न कि एक दरोगा की तरह उसके लिए एक समस्या बनकर बैठ जाये.

Wednesday, 25 December 2013

अमेरिका कि दादागिरी

न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ़्तारी और कथित तौर पर उनसे दुर्व्यवाहर से भारत और अमरीका बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई है. भारत-अमेरिका के रिश्तों में तनाव का यह कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी शीर्ष भारतीय हस्तियों के साथ अमेरिका में बदसलूकी का मामला प्रकाश में आया हैं।

बांग्लादेश युद्ध से दो महीने पहले जब इंदिरा गाँधी अमरीका गई थीं तो निक्सन ने इंदिरा को मिलने से पहले 45 मिनट तक इंतज़ार कराया था.
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के स्थायी प्रतिनिधि हरदीप पुरी के साथ ऑस्टिन हवाई अड्डे पर सुरक्षा के नाम पर बदसलूकी की गई। हरदीप पुरी से सुरक्षाकर्मियों ने पगड़ी उतारकर तलाशी लेने की कोशिश की। पुरी ने अपना विरोध दर्ज कराते हुए वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बात की। बाद में सुरक्षाकर्मियों को माफी मांगने के लिए बाध्य होना पड़ा।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के साथ भी अमेरिका में बदसलूकी का मामला प्रकाश में आ चुका हैं। अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी सुरक्षा जांच के नाम पर प्लेन में बैठे भारतीय पूर्व राष्ट्रपति के जूते और जैकेट तक ले गए। जांच के बाद उनका सामान लौटा दिया गया। हालांकि एयरपोर्ट पर पहले ही कलाम की स्क्रीनिंग हो चुकी थी इसके बादजूद भी अमेरिकी अधिकारियों ने ऐसा किया।


अमेरिका में भारत की राजदूत मीरा शंकर के साथ अमेरिका के जैक्सन-एवर्स इंटरनेशनल एयर पोर्ट पर बदसलूकी की गई है। मिसीसिपी में हुई इस घटना में साड़ी पहने हुए मीरा शंकर को लाइन से बाहर कर उनकी चेकिंग की गई। साड़ी के चलते ही सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें लाइन से अलग कर उनकी जांच की जबकि मीरा शंकर ने सुरक्षा कर्मियों को यह बताया कि वे राजदूत हैं। राजदूतों को इस तरह की जांच से छूट मिली हुई है।
बॉलीवुड अभिनेता शाहरूख खान के साथ भी अमेरिका के एक हवाईअड्डे पर बदसलूकी हो चूकी हैं। सिर्फ अपने नाम और मजहब की वजह से अमेरिका में शाहरुख खान को निशाना बनाया गया। शाहरुख को अमेरिका के नेवार्क एयरपोर्ट पर दो घंटे तक रोक लिया गया। भारतीय दूतावास के दखल के बाद किंग खान की रिहाई हुई।
अभी तक इन सभी मामलों में भारत सरकार का रुख नरम रहा था परन्तु इस मामले में भारत ने  कई प्रकार के सख्त कदम उठा के अपना विरोध दर्ज कराया है। अब आगे देखना है कि इन क़दमों का अमेरिका पर क्या असर होगा।

भारत में महिलाओं कि स्थिति

“लाख दावो के बावजूद महिलायेँ न घर के भीतर महफूज है ,न घर के बाहर,न नौकरी में इन्हें समुचित हिस्सा मिल रहा है ,न काम के बदले पुरुषो के समान पगार। हर मामले में महिलाएँ अब भी समाज के हाशिये पर है। सांख्यकी मंत्रालय ने तमाम एजेंसियों से मिली रिपोर्टो के आधार पर देश की महिलाओ की जो तस्वीर पेश की है ,वह ऐसा ही जाहिर करती है। 
 आज नारी पहले की अपेक्षा कही अधिक् शिक्षित ,आधुनिक व्यक्तित्व संपन्न और आत्म निर्भर कही जाती है।  वैचारिक स्तर पर अधिक प्रबुद्ध और स्वतन्त्र आत्म चेता समझी जाती है। क्योंकि आज वह अपने निजत्व की पहचान के लिये अधिक जागरूक और अधिक प्रयासरत दिखाई देती है। किन्तु वास्तविक स्थिति और भी गंभीर है विडम्बना पूर्ण है। नारी के प्रति मध्ययुगीन सोंच में न तो कोई बदलाव आया है,और न ही उसके प्रति पौरुष के आतंकवादी दमन चक्र में कोई फर्क। बल्कि इस दकियानूसी कठमुल्लेपन का घेरा औरत के आसपास कुछ अधिक ही कस गया है। यदि हुआ है तो सिर्फ इतना ,कि नारी ने अपने को पहचान लिया है और वह इस पहचान को एक सुनिश्चित दिशा देकर ,एक सुनिश्चित स्थान पाने के लिए सतत संघर्षरत भी है। यदि इस उपलब्धि (?) को छोड़ दिया जाय ,तो नारी आज भी जन्म से मृत्यु तक नीति और धर्म के नाम पर दूसरे की इच्छाओ अथवा स्वार्थो के लिए बलिदान होने को उतनी ही मजबूर है जितना सदियों से रही है। क्योकि सामाजिक ढर्रे में बदलाव कभी इतना आसन नहीं होता और समाज की अंतर्चेतंना जागृत होने में जो अवधि लगेगी ,वही नारी की क्षमता और शक्ति की असली पहचान भी होगी। यह समर है नारी की स्वाधीनता और अधिकार के पुनर्प्राप्ति का इसमें अभी जाने कितनी दामिनियों का बलिदान बाकी है ,जाने कितनी तड़प और आँसुओं का बहना बाक़ी है और रक्त पिपासुओं के हाथो जाने कितनी वीरांगनाओ का जौहर बाकी है ,यह सारे उलझे सवालों का जखीरा अभी वक्त के हाथ में ही है !
जो लोग महिलाओं को पीछे रखने की साजिश में सदा आगे रहते है ,उन्हें शायद नहीं मालूम, कि रथ का एक पहिया यदि कमजोर होकर टूटेगा ,तो उस पर सवार रथी की अस्मिता भी खतरे में पड़ जाएगी। उनकी बेचारगी उस मूर्ख युवक सी है ,जो जिस डाल पर बैठा है उसी को काटे जा रहा है। अतीत गवाह है कि समाज और धर्म के कटघरे में हमेशा औरत को ही जवाबदेह बनाया जाता रहा है। पुरुषो ने अपनी संप्रभुता का लाभ उठा कर जितने भी नीति नियम और व्यवस्था परक आचार संहिता का निर्माण किया उसका एक भी अनुच्छेद वाक्य या शब्द ,उन्हें कभी भी सलाखों के पीछे नहीं ले जा सकता। चाहे वह नारी के प्रति कितने भी अपराध करे। उससे सवाल नहीं पूछे जा सकते। बहु विवाह, स्त्री का शारीरिक शोषण ,उसे यातना परक जीवन के लिए बाध्य करना ,उसको जीवित संपत्ति मान कर ,उस पर शासन करना , उसे सम्बंधविच्छेद के लिए मजबूर करना ,दहेज़ न मिलने पर उसे जीवित जला देना ,या घर से बेघर कर देना ,और गुजारा तक न देना ,उसे कोठे पर बेच देना पुत्री के रूप में जन्म लेने पर गला घोंट कर मार देना ,मर्जी से शादी करने पर उसे सरे आम काट कर फेंक देना ,उस पर दबाव न बना पाने की स्थिति में उस परतेज़ाब फेंक कर पूरी जिंदगी उसे तड़प तड़प कर जीने के लिए मजबूर कर देने जैसी ,विचित्र और बर्बर अत्याचारो की, अतीत से वर्तमान तक , अनवरत श्रंखला है। जिसमे सबसे तकलीफ देह वह आदिम समस्या है ,जो हवस के हब्शियों द्वारा स्त्री देह को सदियों से अपनी जागीर समझ कर दुर्दांत रूप से नोच खसोटा जाता रहा है। पिछले दस बीस सालो में तो बर्बरता की सीमा समाप्त हो गई। स्त्री चाहे वह नवजात हो बच्ची हो किशोरी हो ,वृद्धा हो वह केवल यौनिकता की मशीन बन कर रह गई है। और इन अत्याचारों को पुरुष अपने पौरुष का आभूषण समझता हुआ आज निर्लज्जता की हर सीमा लाँघ चुका है।
इंटरनेट व् अश्लील सिनेमा पोर्न साईट की खुला उपयोग हमारी भारतीय संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने पर तुल गया है। हम भूल गए है, कि भारत में सदियों से स्त्री को देवी का उच्च स्थान प्राप्त है, कन्या की हम पूजा करते है ,और उसी की मासूम देह को कुत्ते की तरह झंझोड़ते हुए हम डूब कर मर क्यों नहीं जाते। अपनी बच्ची पिता के घर में सुरक्षित नहीं होगी ,तो फिर कहाँ होगी ?बहन भाई के पास नहीं सुरक्षित होगी तो कहाँ जाएगी ?पत्नी का बलात्कार स्वयं पति अपने मित्रो के साथ मिल कर करता है तब पत्नी क्या करे। पौरुष का आतंकवादी अहंकार रक्त बीज की तरह असंख्यों रूपों और हर युग में स्त्री को पालतू पशु से अधिक का दर्जा कभी नहीं दे सकता ! ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ,रमन्ते तत्र देवता …’ की स्मृति अवधारणा से ‘आज नारी ‘जब तक चाहा ,कुचला मसला और जब चाहा दुत्कार दिया ‘के स्तर से भी बहुत नीचे पहुँच चुकी है। स्त्री पुरुष की मानसिक आर्थिक ,शारीरिक अधीनता स्वीकार कर ले और स्वीकार करती रहे ,इसके लिए पुरुषो ने साम ,दाम, दंड ,भेद सभी तरह के हथकंडे अपनाये। विशेषत: नारी की स्वाभाविक सरल वृत्ति को आकर्षित कर बाँधने के लिए धर्म की ओट में अनेको कुचक्र रचे गए। प्राचीन काल से आज तक जितने भी व्रत उपवास अनेकानेक धार्मिक कर्म कांड और परंपराओं के नाम पर हितपक्षी रुढियाँ स्त्रियों के लिए प्रचलित और अनिवार्य की गई ,उनमे से एक भी नियम को मानने के लिए पुरुष बाध्य नहीं है। करवा चौथ ,गणेश पूजा ,भैया दूज ,यानी पति ,पुत्र,भाई के हितो की प्रार्थनायेँ महज इसलिए कि इनसे महिलाओ को सामाजिक आर्थिक सुरक्षा मिलती है ,पैरो तले जमींन मिलती है।  इस सारे कुचक्र में महिलाएँ ही क्यों पिसती है। पुरुष इनसे सर्वथा दूर क्यों रहता है ? क्या पुरुष कल्याण कामना नहीं कर सकता ? उस बहन पुत्री ,माँ या पत्नी की जिससे उसे जन्म मिलता है ,निश्छल स्नेह मिलता है ,गृहस्थी का पूर्ण सुख मिलता है। पत्नी जो अपना सर्वस्व समर्पण करके घर को बच्चो को सजाती सवाँरती और बनाती है, यहाँ तक कि इस व्यूह में कोल्हू के बैल सी जुती रहकर अपने आत्म सम्मान की और आत्म व्यक्तित्व की स्वतन्त्र सत्ता तक भूल जाती है। कठिन से कठिन संघर्ष में भी पुरुष को हिम्मत बंधाती है। प्रेम की अमॄत संजीवनी पिला कर उसे नूतन प्राण शक्ति से सींच देती है और जब कभी अटूट निराशाओं से क्लांत होकर जीवन रथ का पहिया धसकने लगता है ,तो उसकी धुरी में भुजा डाल कर हार को जीत में बदल देती है।
पुरातन पंथी मानसिकता में उलझे अभिभावकों का एक बड़ा समुदाय पुत्र और पुत्री को बंटी हुई द्रष्टि से देखता है। ममता को धन और स्वार्थ की तुलापर तौलता है। उनका प्यार सिर्फ इसलिए विभाजित हो जाता है ,कि लड़की उन्हें स्वर्ग नहीं पहुचाँएगी, कमा कर नहीं खिलाएगी , जबकि उनकी समझ में पुत्र का किंचित पदाघात भी उन्हें मुक्ति का परम मार्ग दिखा देगा। संतानोत्पत्ति का प्राकृतिक नियम तो महज इसलिए है, कि वंश परम्परा समाप्त न हो और भूख प्यास , नीदं ,की ही तरह एक स्वाभाविक विशेष वृत्ति ममत्व की संतुष्टि हो सके।  पशु, पक्षी , प्राणी समुदाय सभी इस नियम को मानते है ,वे ममता के साथ स्वार्थ कभी नहीं जोड़ते ,लेकिन इसका यह भी तात्पर्य कदापि नहीं ,कि संतान सिर्फ अधिकार भोग कर ,स्वेछाचारिता के लिए मुक्त हो जाएगी। यदि अभिभावक के द्रष्टि कोण की आलोचना की जा सकती है ,तो संतान को भी माँ बाप के प्रति कर्तव्यच्युत होने पर माफ़ नहीं किया जा सकता।उचित तो यही होगा कि वह पोंगा पंथी सामाजिक धार्मिक मान्यता ही समाप्त कर दी जाय ,जिसके अंतर्गत पुत्री के घर का पानी भी नहीं पिया जाता। क्यों न दोनो को सेवा पोषण ,अंतिम संस्कार का सामान अवसर मिले। दोनों एक ही रक्त के अंश है ,और इस रुढ मान्यता के टूटते ही ,पुत्र व् पुत्री के मध्य उपजी विभाजक रेखा स्वयं ही समाप्त हो जाएगी। लेकिन जिस देश में दस लाख लडकियाँ सिर्फ इस जुर्म के कारण मृत्यु के मुख में झोंक दी जाती हो ,कि उन्होने लड़की के रूप में जन्म लिया है ,उस अंधे देश में उजाले की किरण कब दिखाई देगी ,कुछ कहा नहीं जा सकता !
पौरुष का सम्मान और उसके चरणों में सर रख देने की इच्छा स्त्री के मन में होती है किन्तु तब जब पौरुष भी एक गरिमामय तेजस्वी जीवन का उदहारण हो। सीता के मन की कसौटी पर खरा उतरने वाला पुरुष वही हो सकता है जिसने राम का जीवन जिया हो। स्त्री को नाना प्रकार से परम्पराओं नैतिकताओ ,के पाश में बाँधने वाला पुरुष समाज स्वयं अपने गिरेबान में झांक कर देखे ,कि वह कितना प्रतिबद्ध है ,उन सिद्धान्तो के प्रति जो उसने नारी के लिए बनायें। स्त्री सदा साफ सच्चे और ईमानदार चरित्र को ही मन से समर्पित होती है। स्वेच्छा से उसका दासत्व ग्रहण कर सुख मानती है , बात बात पर रंग बदलने वाले दो मुहों के लिये ,दरिंदगी को ,पशुता को पौरुष का प्रतीक मानकर स्त्री को पांव की जूती मानने वाले के लिए ,उसके ह्रदय में अपरिमित धिक्कार ही मिल सकता है। यह बात अलग है कि आर्थिक परवशता प्रतिकूल परिस्थितियो और रुढिगत मान्यताओ के कारण नारी अपनी अभिव्यक्ति को स्पष्ट आवाज न दे पाती हो। लेकिन  जब भी उसे मौका मिला है ,अपने हक़ में रौशनी की एक भी किरण नजर आई है ,वह अपनी पहचान के लिए ,अपने स्तर पर लड़ी अवश्य है ,और यह बता दिया है कि ,इतिहास सिर्फ पुरुष ही नही स्त्रियाँ भी बना सकती है और बिगाड़ भी सकती है। वक्त को अपनी अदम्य इच्छा शक्ति द्वारा परिवर्तन के मोड़ पर खड़ा कर सकती है। दबी कुचली अनपढ नारी के भीतर भी अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए उस बीज जैसी ही प्रबल जिजीविषा हो सकती है ,जो तनिक अनुकूलता हाथ लगते ही धरती का सीना फोड़ कर अंकुर के रूप में उभर आता है और एक दिन विशाल वृक्ष बन कर जीने का अधिकार हासिल ही कर लेता है। 

Tuesday, 3 December 2013

चीन की भू -कूटनीति

 हाल के दिनों में  चीन और जापान के बीच विवाद की वजह बने हुए द्वीप को जापान में सेनकाकू और चीन में दियाओयू और ताइवान में तियाओयूताल के नाम से जाना जाता है। इन पर जापान का नियंत्रण है,  इंसानी बसाहट से रहित इन विवादित द्वीपों  में विपुल जल संसाधन और जीवाश्म ईंधन के भंडार की संभावनाओं की वजह से हाल के वर्षों में तनाव का कारण रहे हैं। चीन ने पिछले हफ्ते  इस क्षेत्र को 'हवाई रक्षा पहचान क्षेत्र' घोषित कर दिया चीन के इस वायु रक्षा क्षेत्र में पूर्वी  चीन सागर का एक बड़ा हिस्सा शामिल है, इसमें वे द्वीप समूह भी आते हैं जिन पर जापान, चीन और ताइवान अपना हक़ जताते हैं। इस नए हवाई क्षेत्र में पानी में डूबा एक चट्टानी क्षेत्र भी है जिसे दक्षिण कोरिया अपना इलाक़ा बताता है।   चीन बीते हफ़्ते कह चुका है कि इस क्षेत्र से गुज़रने वाले तमाम विमानों को अपनी पहचान ज़ाहिर करना चाहिए वरना उन्हें 'आपात रक्षात्मक उपायों' का सामना करना होगा।
चीन ने घोषणा की  कि वो इस इलाक़े में निगरानी और प्रतिरक्षा को ध्यान में रखते हुए लड़ाकू विमानों की तैनाती कर रहा है।  वायु रक्षा क्षेत्र बनाने के चीन के कदम से कुछ देशों ने ख़ासी नाराज़गी ज़ाहिर की है. अमरीकी विदेश विभाग ने इसे 'पूर्वी चीन सागर की मौजूदा स्थिति में एकतरफ़ा बदलाव की कोशिश' बताया है जो 'क्षेत्रीय तनाव, टकराव और दुर्घटनाओं का ख़तरा बढ़ाएगी।  अमरीका, जापान और दक्षिण कोरिया का कहना है कि उन्होंने चीन की इस व्यवस्था को ख़ारिज़ करते हुए इस क्षेत्र में अपने लड़ाकू विमानों को उड़ाया था।
 
 चीन और जापान के बीच में समुद्री क्षेत्र को लेकर जो नया विवाद उत्त्पन हुआ है वो नया नहीं है, बल्कि ये विवाद वर्ष 1995 में उस समय प्रारंभ हुआ जब चीन ने इस विवादित क्षेत्र में  चुनक्सिओ गैस क्षेत्र में प्राकृतिक गैस के भण्डरों का पता लगया जो कि चीन के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र  में आता था, पर जापान का मानना था की चीन को विवादित क्षेत्र में कोई आर्थिक गतिविधि नहीं करनी चाहिये क्योंकि मध्य रेखा के पार इन गैस क्षेत्रों का जापान विशिष्ट  आर्थिक क्षेत्र  में हिस्सा हो सकता है।  समुद्री  पर  सयुंक्त रास्ट्र समझौते  के अनुसार तट रेखा से 200 समुद्री मील तक के क्षेत्र को उस देश का विशिष्ट  आर्थिक क्षेत्र  मन जाता है इस क्षेत्र में पाये जाने वाले सभी प्राकृतिक संसाधनो पर उस देश का अधिकार होता है। इस नियम के अनुसार  चीन और जापान दोनों के दावे सही है क्योंकि दोनों ही अपने क्षेत्र से 200 समुद्री मील तक का ही दावा कर रहे है पर इस पूरे  क्षेत्र कि कुल चौड़ाई ही  360 समुद्री मील है और इस प्रकार 40000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र विवाद का कारण बना हुआ है।   हालाँकि 2008 में इस विवाद का अंत हो गया था जब दोनों देश ने मिल कर गैस उत्खनन का फैसला किया था पर 2012 में जापान और चीन के मध्य तनाव उस समय गहराया जब जापानी सैनिकों ने चीन के मछुवारे को गिरफ्तार कर  लिया था जिससे चीन में जापान विरोधी आंदोलन हुआ था जिसके बाद दोनों देशों ने अपने अपने राजदूतों को वापस बुला लिया था इसके बाद तनाव और बढ़ा जब जापान ने तीन द्वीपों को एक जापानी नागरिक से खरीद लिया था। 
चीन अपने विकास को बनाये रखने के लिए कूटनीतिक जीत कि जरुरत थी , इसके अतरिक्त एक सामरिक शक्ति  के रूप में उभरने के लिए चीन को अपने पडोसी देशों के बीच अपना दबदबा बनाना ज़रूरी है। इसी कारण चीन का लगभग हर पडोसी देश के साथ सीमा को लेकर तनाव है या था। चीन विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या तथा क्षेत्रफल में तीसरा सबसे बड़ा देश है।  14 देशों कि सीमा चीन के साथ लगी है जो 22000 किलोमीटर लम्बी है।  इन देशों में भारत,उत्तरी कोरिया , वियतनाम, रूस ,लाओस, मंगोलिअ , म्यांमार, कज़ाख़िस्तान, भूटान , किर्गीज़तन,  अफगानिस्तान , ताजीकिस्तान और नेपाल शामिल है।  इनमे से चीन का हर एक देश  से कभी न कभी सीमा विवाद था या अभी है।  इसके अतरिक्त कुछ ऐसे देश है जिनसे चीन का समुद्री क्षेत्र मिला है और उन देशो के साथ भी चीन का कुछ विवाद है।  इनमे ताइवान , फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रूनेई, इंडोनेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल है।

वियतनाम

चीन वियतनाम के साथ 1300 किलोमीटर की सीमा बांटता है। 1978 में वियतनाम  के द्वारा कंबोडिया पर कब्ज़ा करने के बाद 1979 में चीन ने वियतनाम पर हमला कर दिया और उत्तरी वियतनाम के कई सीमावर्ती क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया इस युद्ध में  दोनों देशों को नुकसान उठाना पड़ा था पर दोनों देश ने युद्ध में अपनी जीत  मानी क्योंकि चीनी सेना को पीछे हटना पड़ा और कंबोडिया 1989 तक विएतनाम के कब्जे में रहा ।  1980 और 1990 के दशक में दोनों देशो के बीच सीमा को लेकर विवाद बना रहा पर 1999 में दोनों देशों ने सीमा समझौता कर  लिया।   वर्ष 2011 में भारत के समुद्री जहाज आई न एस ऐरावत की  विएतनाम यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच फिर से तनाव बन गया है।

  उत्तरी कोरिया

उत्तर कोरिया और चीन 1416 किलोमीटर की सीमारेखा साझा करते है , ये सीमा यालू और तुमेन नदी द्वारा निर्धारित होती है, जिसे 1962 में दोनों देशों ने स्वीकार किया था। पर विवाद नदी की सीमांकन रेखा को लेकर है। इसके अतरिक्त कुछ द्वीपों तथा पैकटु पर्वत भी विवाद का विषय हैं  जहाँ से इन दोनों नदी का उद्गम होता है . मार्च 1968 से मार्च 1969 तक इन दोनो देशों के मध्य कई झड़प हुई थी पर इन झड़पों के बाद दोनों देशों के सम्बन्धों में कुछ सुधार हुआ और 1970 में दोनों देश ने नदी के मुद्दे को हल कर लिया।  पर अभी तक दोनों देश ऐसे प्रभावी समझौते पर  नहीं पंहुचे  इसके पीछे मुख्य कारण  है  उत्तर कोरिया कि चीन पर राजनीतिक  तथा आर्थिक निर्भरता।

रूस

 वर्त्तमान समय में चीन और रूस में सीमा को लेकर कोई विवाद नहीं है, पर 2004 से पहले दोनो के बीच सीमा को लेकर काफी विवाद था। चीन और रूस के बीच में 4300 किलोमीटर का सीमा क्षेत्र है  और इस क्षेत्र में विवाद कि प्रमुख  कारण थे उसरी नदी का ज़हेंबओ द्वीप तथा अमुर और आर्गुन नदी के द्वीप।  1991 में सोवियत रूस के पतन से पूर्व इस  समयस्या  का कोई हल नहीं निकल सका परन्तु 2004 में  रूस ने  चीन को अबगैतु द्वीप और ईनलोंग द्वीप का पूरा भाग तथा बोलशोई उसुरियस्की द्वीप का आधा भाग तथा कुछ अन्य छोटे द्वीप  देने का फैसला किया जिससे दोनों देश के मध्य अब कोई सीमा विवाद नहीं है।

 क़ज़खातन

 क़ज़खातन  और चीन के मध्य 1700 किलोमीटर सीमा है।  सोवियत यूनियन के विघटन के बाद   क़ज़खातन  और चीन के मध्य सीमा विवाद प्रारम्भ तो हुआ था पर अप्रैल 1994 में   क़ज़खातन  और चीन के मध्य पहला सीमा समझौता हुआ और दूसरा जुलाई 1998 में हुआ।  इस समझौते के एवज में चीन ने  क़ज़खातन  में अपना निवेश करने तथा  क़ज़खातन  के साथ आर्थिक गतिवधि तेज़ करने कि पेशकश की।

मंगोलिअ

मंगोलिअ और चीन के बीच 4677 किलोमीटर लम्बी सीमा रेखा है जो सबसे बड़ी है . इन दोनों देशो के बीच सीमा समझौता 1962 में हो गया था जिसके बाद चीन ने मंगोलिअ  में अपनी आर्थिक गतिवधि तेज़ कर दी है जिससे मंगोलिअ कि निर्भरता चीन पर बढाती जा रही है और ये निर्भरता सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में नहीं है बल्कि सामरिक क्षेत्र में भी है।

 ताजीकिस्तान


 ताजीकिस्तान के साथ चीन का सीमा समझौता 1999 में हुआ जिसमे  चीन को पामीर पर्वत में 1000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र प्राप्त हुआ।

 भारत


भारत और चीन के बीच 3380 किलोमीटर लम्बी सीमा है।  इन दोनों देशों के बीच विविड का मुद्दा अक्साई चीन और अरुणांचल प्रदेश है।  अक्साई चीन भारत का वो भाग है जिसे पाकिस्तान ने चीन को हस्तांतरित कर दिया था चीन अब इस क्षेत्र में सड़क निर्माण कर चूका है।  ये क्षेत्र चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये तिब्बत को जिंजिआंग प्रान्त से जोड़ता है।  इसके अतरिक्त  अरुणांचल प्रदेश पर चीन ये कहकर  अपना दवा करता है कि ये दक्षणी तिब्बत है और उस पर चीन का अधिकार है।  भारत के साथ अभी तक चीन का कोई सीमा समझौता नहीं हुआ है परन्तु दोनों देशों के मध्य आर्थिक गतिविधि तेज़ हुई है।

जापान

जापान और चीन विश्व कि दो बड़ी अर्थवयवस्था हैं, दोनों देशों के मध्य समुद्री  जल सीमा और समुद्री टापुओं को लेकर विवाद है।  इन टापुओं पर जापान और चीन दोनों अपने अपने दावे करते हैं।  वर्त्तमान समय में ये विवाद वैश्विक रूप ले चुका है जिसमे अमेरिका और दक्षिण कोरिया भी शामिल हो गए हैं।

अन्य विवाद

चीन और वियतनाम के बीच में तोक्न कि खाड़ी को लेकर विवाद , चीन, इंडोनेशिया  के मध्य नतुन द्वीप को लेकर विवाद। इस क्षेत्र में चीन द्वारा दक्षणि चीन  समुद्र में निर्धारित की गई नाइन डैश रेखा से लगभग सभी देश चिंतित है क्योंकि ये रेखा ब्रूनेई , मलेशिया , फिलीपीन  और वियतनाम के विशिष्ट  आर्थिक क्षेत्र  का अतिक्रमण करती है।

पूरी स्तिथि पर नगर डाली जाय तो ये ज्ञात होता है कि चीन ने हर देश के साथ अपनी कूटनीतिक जीत को सुनिशित करने वाली संधि की है . भारत ही एकमात्र देश है जिसके साथ चीन कि कोई संधि नहीं हुई है।