हाल के दिनों में चीन और जापान के बीच विवाद की वजह बने हुए द्वीप को जापान में सेनकाकू और चीन में दियाओयू और ताइवान में तियाओयूताल के नाम से जाना जाता है। इन पर जापान का नियंत्रण है, इंसानी बसाहट से रहित इन विवादित द्वीपों में विपुल जल संसाधन और जीवाश्म ईंधन के भंडार की संभावनाओं की वजह से हाल के वर्षों में तनाव का कारण रहे हैं। चीन ने पिछले हफ्ते इस क्षेत्र को 'हवाई रक्षा पहचान क्षेत्र' घोषित कर दिया चीन के इस वायु रक्षा क्षेत्र में पूर्वी चीन सागर का एक बड़ा हिस्सा शामिल है, इसमें वे द्वीप समूह भी आते हैं जिन पर जापान, चीन और ताइवान अपना हक़ जताते हैं। इस नए हवाई क्षेत्र में पानी में डूबा एक चट्टानी क्षेत्र भी है जिसे दक्षिण कोरिया अपना इलाक़ा बताता है। चीन बीते हफ़्ते कह चुका है कि इस क्षेत्र से गुज़रने वाले तमाम विमानों को अपनी पहचान ज़ाहिर करना चाहिए वरना उन्हें 'आपात रक्षात्मक उपायों' का सामना करना होगा।
चीन ने घोषणा की कि वो इस इलाक़े में निगरानी और प्रतिरक्षा को ध्यान में रखते हुए लड़ाकू विमानों की तैनाती कर रहा है। वायु रक्षा क्षेत्र बनाने के चीन के कदम से कुछ देशों ने ख़ासी नाराज़गी ज़ाहिर की है. अमरीकी विदेश विभाग ने इसे 'पूर्वी चीन सागर की मौजूदा स्थिति में एकतरफ़ा बदलाव की कोशिश' बताया है जो 'क्षेत्रीय तनाव, टकराव और दुर्घटनाओं का ख़तरा बढ़ाएगी। अमरीका, जापान और दक्षिण कोरिया का कहना है कि उन्होंने चीन की इस व्यवस्था को ख़ारिज़ करते हुए इस क्षेत्र में अपने लड़ाकू विमानों को उड़ाया था।
चीन और जापान के बीच में समुद्री क्षेत्र को लेकर जो नया विवाद उत्त्पन
हुआ है वो नया नहीं है, बल्कि ये विवाद वर्ष 1995 में उस समय प्रारंभ हुआ जब
चीन ने इस विवादित क्षेत्र में चुनक्सिओ गैस क्षेत्र में प्राकृतिक गैस
के भण्डरों का पता लगया जो कि चीन के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में आता
था, पर जापान का मानना था की चीन को विवादित क्षेत्र में कोई आर्थिक
गतिविधि नहीं करनी चाहिये क्योंकि मध्य रेखा के पार इन गैस क्षेत्रों का जापान
विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में हिस्सा हो सकता है। समुद्री पर सयुंक्त
रास्ट्र समझौते के अनुसार तट रेखा से 200 समुद्री मील तक के क्षेत्र को उस देश का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र मन जाता है इस क्षेत्र में पाये जाने
वाले सभी प्राकृतिक संसाधनो पर उस देश का अधिकार होता है। इस नियम के
अनुसार चीन और जापान दोनों के दावे सही है क्योंकि दोनों ही अपने क्षेत्र
से 200 समुद्री मील तक का ही दावा कर रहे है पर इस पूरे क्षेत्र कि कुल
चौड़ाई ही 360 समुद्री मील है और इस प्रकार 40000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र
विवाद का कारण बना हुआ है। हालाँकि 2008 में इस विवाद का अंत हो गया था
जब दोनों देश ने मिल कर गैस उत्खनन का फैसला किया था पर 2012 में जापान और चीन के मध्य तनाव उस समय गहराया जब जापानी सैनिकों ने चीन के मछुवारे को गिरफ्तार कर लिया था जिससे चीन में जापान विरोधी आंदोलन हुआ था जिसके बाद दोनों देशों ने अपने अपने राजदूतों को वापस बुला लिया था इसके बाद तनाव और बढ़ा जब जापान ने तीन द्वीपों को एक जापानी नागरिक से खरीद लिया था।
चीन अपने विकास को बनाये रखने के लिए कूटनीतिक जीत कि जरुरत थी , इसके अतरिक्त एक सामरिक शक्ति के रूप में उभरने के लिए चीन को अपने पडोसी देशों के बीच अपना दबदबा बनाना ज़रूरी है। इसी कारण चीन का लगभग हर पडोसी देश के साथ सीमा को लेकर तनाव है या था। चीन विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या तथा क्षेत्रफल में तीसरा सबसे बड़ा देश है। 14 देशों कि सीमा चीन के साथ लगी है जो 22000 किलोमीटर लम्बी है। इन देशों में भारत,उत्तरी कोरिया , वियतनाम, रूस ,लाओस, मंगोलिअ , म्यांमार, कज़ाख़िस्तान, भूटान , किर्गीज़तन, अफगानिस्तान , ताजीकिस्तान और नेपाल शामिल है। इनमे से चीन का हर एक देश से कभी न कभी सीमा विवाद था या अभी है। इसके अतरिक्त कुछ ऐसे देश है जिनसे चीन का समुद्री क्षेत्र मिला है और उन देशो के साथ भी चीन का कुछ विवाद है। इनमे ताइवान , फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रूनेई, इंडोनेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल है।
वियतनाम
चीन वियतनाम के साथ 1300 किलोमीटर की सीमा बांटता है। 1978 में वियतनाम के द्वारा कंबोडिया पर कब्ज़ा करने के बाद 1979 में चीन ने वियतनाम पर हमला कर दिया और उत्तरी वियतनाम के कई सीमावर्ती क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया इस युद्ध में दोनों देशों को नुकसान उठाना पड़ा था पर दोनों देश ने युद्ध में अपनी जीत मानी क्योंकि चीनी सेना को पीछे हटना पड़ा और कंबोडिया 1989 तक विएतनाम के कब्जे में रहा । 1980 और 1990 के दशक में दोनों देशो के बीच सीमा को लेकर विवाद बना रहा पर 1999 में दोनों देशों ने सीमा समझौता कर लिया। वर्ष 2011 में भारत के समुद्री जहाज आई न एस ऐरावत की विएतनाम यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच फिर से तनाव बन गया है।
उत्तरी कोरिया
उत्तर कोरिया और चीन 1416 किलोमीटर की सीमारेखा साझा करते है , ये सीमा यालू और तुमेन नदी द्वारा निर्धारित होती है, जिसे 1962 में दोनों देशों ने स्वीकार किया था। पर विवाद नदी की सीमांकन रेखा को लेकर है। इसके अतरिक्त कुछ द्वीपों तथा पैकटु पर्वत भी विवाद का विषय हैं जहाँ से इन दोनों नदी का उद्गम होता है . मार्च 1968 से मार्च 1969 तक इन दोनो देशों के मध्य कई झड़प हुई थी पर इन झड़पों के बाद दोनों देशों के सम्बन्धों में कुछ सुधार हुआ और 1970 में दोनों देश ने नदी के मुद्दे को हल कर लिया। पर अभी तक दोनों देश ऐसे प्रभावी समझौते पर नहीं पंहुचे इसके पीछे मुख्य कारण है उत्तर कोरिया कि चीन पर राजनीतिक तथा आर्थिक निर्भरता।
रूस
वर्त्तमान समय में चीन और रूस में सीमा को लेकर कोई विवाद नहीं है, पर 2004 से पहले दोनो के बीच सीमा को लेकर काफी विवाद था। चीन और रूस के बीच में 4300 किलोमीटर का सीमा क्षेत्र है और इस क्षेत्र में विवाद कि प्रमुख कारण थे उसरी नदी का ज़हेंबओ द्वीप तथा अमुर और आर्गुन नदी के द्वीप। 1991 में सोवियत रूस के पतन से पूर्व इस समयस्या का कोई हल नहीं निकल सका परन्तु 2004 में रूस ने चीन को अबगैतु द्वीप और ईनलोंग द्वीप का पूरा भाग तथा बोलशोई उसुरियस्की द्वीप का आधा भाग तथा कुछ अन्य छोटे द्वीप देने का फैसला किया जिससे दोनों देश के मध्य अब कोई सीमा विवाद नहीं है।
क़ज़खातन
क़ज़खातन और चीन के मध्य 1700 किलोमीटर सीमा है। सोवियत यूनियन के विघटन के बाद क़ज़खातन और चीन के मध्य सीमा विवाद प्रारम्भ तो हुआ था पर अप्रैल 1994 में क़ज़खातन और चीन के मध्य पहला सीमा समझौता हुआ और दूसरा जुलाई 1998 में हुआ। इस समझौते के एवज में चीन ने क़ज़खातन में अपना निवेश करने तथा क़ज़खातन के साथ आर्थिक गतिवधि तेज़ करने कि पेशकश की।
मंगोलिअ
मंगोलिअ और चीन के बीच 4677 किलोमीटर लम्बी सीमा रेखा है जो सबसे बड़ी है . इन दोनों देशो के बीच सीमा समझौता 1962 में हो गया था जिसके बाद चीन ने मंगोलिअ में अपनी आर्थिक गतिवधि तेज़ कर दी है जिससे मंगोलिअ कि निर्भरता चीन पर बढाती जा रही है और ये निर्भरता सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में नहीं है बल्कि सामरिक क्षेत्र में भी है।
ताजीकिस्तान
ताजीकिस्तान के साथ चीन का सीमा समझौता 1999 में हुआ जिसमे चीन को पामीर पर्वत में 1000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र प्राप्त हुआ।
भारत
भारत और चीन के बीच 3380 किलोमीटर लम्बी सीमा है। इन दोनों देशों के बीच विविड का मुद्दा अक्साई चीन और अरुणांचल प्रदेश है। अक्साई चीन भारत का वो भाग है जिसे पाकिस्तान ने चीन को हस्तांतरित कर दिया था चीन अब इस क्षेत्र में सड़क निर्माण कर चूका है। ये क्षेत्र चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये तिब्बत को जिंजिआंग प्रान्त से जोड़ता है। इसके अतरिक्त अरुणांचल प्रदेश पर चीन ये कहकर अपना दवा करता है कि ये दक्षणी तिब्बत है और उस पर चीन का अधिकार है। भारत के साथ अभी तक चीन का कोई सीमा समझौता नहीं हुआ है परन्तु दोनों देशों के मध्य आर्थिक गतिविधि तेज़ हुई है।
जापान
जापान और चीन विश्व कि दो बड़ी अर्थवयवस्था हैं, दोनों देशों के मध्य समुद्री जल सीमा और समुद्री टापुओं को लेकर विवाद है। इन टापुओं पर जापान और चीन दोनों अपने अपने दावे करते हैं। वर्त्तमान समय में ये विवाद वैश्विक रूप ले चुका है जिसमे अमेरिका और दक्षिण कोरिया भी शामिल हो गए हैं।
अन्य विवाद
चीन और वियतनाम के बीच में तोक्न कि खाड़ी को लेकर विवाद , चीन, इंडोनेशिया के मध्य नतुन द्वीप को लेकर विवाद। इस क्षेत्र में चीन द्वारा दक्षणि चीन समुद्र में निर्धारित की गई नाइन डैश रेखा से लगभग सभी देश चिंतित है क्योंकि ये रेखा ब्रूनेई , मलेशिया , फिलीपीन और वियतनाम के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र का अतिक्रमण करती है।
पूरी स्तिथि पर नगर डाली जाय तो ये ज्ञात होता है कि चीन ने हर देश के साथ
अपनी कूटनीतिक जीत को सुनिशित करने वाली संधि की है . भारत ही एकमात्र देश
है जिसके साथ चीन कि कोई संधि नहीं हुई है।
No comments:
Post a Comment