Friday, 22 November 2013

कितना शर्मनाक है ये

 तहलका के संपादक तरुण तेजपाल के ख़िलाफ़ यौन दुर्व्यवहार के मामले में एफ़आईआर दर्ज तो हो गई है पर इस  घटना ने पुरे मीडिया जगत में नई बहस  को  जन्म दिया है की देश के चौथे स्तम्भ मने जाने  वाले मीडिया में भी इस तरह कि घटना में शामिल होने से अब कोई भी ऐसा स्तम्भ नहीं रहा जो मजबूत हो। पिछले कुछ महीनों में मीडिया जगत में यौन दुर्व्यवहार  के कई मामले सामने आए जैसे दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो में काम कर रही महिलाकर्मियों की शिकायत, सन टीवी की एक महिलाकर्मी एस अकिला का मामला और अब तहलका पत्रिका के संपादक  के ख़िलाफ़ यौन हिंसा की शिकायत। 
वर्ष 1997 में राजस्थान सरकार के एक कल्याणकारी कार्यक्रम में काम करनेवाली भंवरी देवी ने जब बाल विवाह का विरोध किया तो गूजर समुदाय ने उनकी आवाज़ दबाने के लिए उनका सामूहिक बलात्कार किया था. इस मामले पर फैसला सुनाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी विभागों और उपक्रमों में यौन उत्पीड़न के अपराधों से निपटने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे.
कोर्ट ने कहा, “दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नाते हमें महिलाओं के खिलाफ हिंसा से लड़ना होगा, घर और बाहर, सभी जगह उनकी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए संसद को कानून में ज़रूरी बदलाव लाने चाहिएं.”
 सुप्रीम कोर्ट ने भारत की सभी राज्य सरकारों को काम के स्थान पर यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए जारी किए गए निर्देशों को लागू करने और उसके लिए उचित कानूनी तंत्र बनाने को कहा है. 15 वर्ष पहले यौन उत्पीड़न के एक मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों को रोकने और ऐसी शिकायतों की सुनवाई के लिए कुछ निर्देश बनाए थे जिन्हें विशाखा निर्देश के नाम से जाना जाता है. 

विशाखा निर्देश

  • हर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने और ऐसे मामलों की सुनवाई का प्रबंध करने की ज़िम्मेदारी मालिक और अन्य ज़िम्मेदार या वरिष्ठ लोगों की हो.
  • निजी कंपनियों के मालिकों को अपने संस्थानों में यौन शोषण पर रोक के विशेष आदेश दें.
  • यौन उत्पीड़न की सुनवाई के दौरान पीड़ित या चश्मदीद के खिलाफ पक्षपात या किसी भी तरह का अत्याचार ना हो.
  • इस सबके लिए एक महिला की अध्यक्षता में एक शिकायत समिति बने जिसके सदस्यों में महिला संगठनों के प्रतिनिधि भी हों.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को 16  साल बीत चुके हैं. मगर भारत की ना जाने कितनी संस्था ऐसी हैं जहाँ अभी तक इस समिति का गठन नहीं किया है.

यौन दुर्व्यवहार के मामलों के आंकड़ों

 देल्ही में 16 दिसंबर को हुए शर्मनाक घटनाक्रम के बाद और जस्टिस वर्मा की शिफारिशों के बाद अबतक बलात्कार के मामलों में कमी नहीं हुई बल्कि 30 % की वृद्धि दर्ज की गई है।
 सभी अपराधों के बारे में आंकडे जुटाने और जारी करने वाली संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार बलात्कार के मामलों में आंकड़े साल 1971 के बाद से ही उपलब्ध हैं. जहाँ 1971 में इस तरह के 2,487 मामले दर्ज किए गए थे वहीं 2011 में दर्ज किए गए मामलों की संख्या 24,206 थी यानी 873% से भी ज्यादा की बढ़ोत्तरी!
2001 से लेकर 2010 तक दर्ज किए गए बलात्कार के मामलों में मात्र 36,000 अभियुक्तों के खिलाफ ही अपराध साबित हो सके. ख़ास बात ये भी है कि अपराधों का मामला सिर्फ बलात्कार तक सीमित नहीं है.भारत में पिछले 40 वर्षों में बलात्कार की घटनाओं में क़रीब 800 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है.
राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी किए आंकड़ों के मुताबिक़ अन्य सभी अपराधों, जैसे हत्या, डकैती, अपहरण और दंगों के मुक़ाबले बलात्कार की घटनाओं में सबसे ज़्यादा बढ़ोत्तरी हुई है.
महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों के जो आंकड़े 2011 में जारी किए गए हैं, उनमे अपहरण की घटनाएँ 19.4% बढ़ी हैं जबकि 2010 की तुलना में 2011 में महिलाओं की तस्करी के मामलों में पूरे 122% का इज़ाफा दर्ज किया गया था.
 शायद यही वजह है कि ट्रस्ट लॉ नामक थॉमसन रायटर्स की संस्था ने जी-20 देशों के समूह में भारत को महिलाओं के रहने के लिए सबसे बदतर जगह बताया है.

शर्मनाक  परीक्षण

 बलात्कार की शिकार हुई महिलाओं को लगातार कई तरह की फ़ोरेंसिक जांच से गुज़रना पड़ता है जिसमें दो उंगलियों से किया जानेवाला परीक्षण भी शामिल है जिसके ज़रिए ये पता लगाया जाता है कि बलात्कार हुआ है या नहीं या फिर यौन संबंध बनाया गया है या नहीं। क़ानून के जानकारों का कहना है कि उंगली परीक्षण बलात्कार की पुष्टि करने का एकमात्र तरीक़ा नहीं है और अगर इसे हटा भी दिया जाता है तो जांच में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। दो उंगलियों से परीक्षण बलात्कार की पुष्टि की कोई अहम शर्त नहीं है. बलात्कार के मामलों में पीड़ित का बयान सबसे महत्वपूर्ण है.इसके अलावा मेडिकल सबूत तथा अन्य साक्ष्य ज़्यादा अहमियत रखते हैं.
बलात्कार की शिकार हुई महिलाओं और बच्चों को और अधिक मानसिक प्रताड़ना से बचाने के लिए योजना आयोग की एक उच्च स्तरीय समिति ने सुझाव दिया है कि बलात्कार और यौन संबंध की पुष्टि के लिए किया जानेवाला उंगली परीक्षण ख़त्म कर दिया जाना चाहिए. समिति ने ये भी कहा है कि यौन उत्पीड़न के शिकार हुए बच्चे अक़्सर ये बताने में सक्षम नहीं होते कि उनके साथ किस तरह का यौन दुर्व्यवहार हुआ है, इसलिए ऐसे मामलों में क़ानून को बाल मनोविश्लेषक और चिकित्सक जैसे विशेषज्ञों को बच्चों की तरफ़ से पेश होने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि उत्पीड़न की सही स्थिति का पता चल सके। सामाजिक कार्यकर्ता लंबे अरसे से इस परीक्षण को अपमानजनक बताते हुए ख़त्म करने की मांग कर रहे थे. उनका कहना है कि बलात्कार की पुष्टि के लिए किया जानेवाला ये एक अवैज्ञानिक और अपमानजनक तरीक़ा है.
इन्हीं मांगों पर ग़ौर करते हुए योजना आयोग की समिति ने यौन उत्पीड़न के शिकार हुए लोगों की सुरक्षा के लिए ये सुझाव भी दिया है कि ऐसे पीड़ितों को पुलिस, मजिस्ट्रेट, अदालत आदि के सामने बार-बार बयान देने के लिए भी बाध्य नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इससे पीड़ित व्यक्ति मानसिक रूप से और ज़्यादा परेशान होता है.





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